नहरी पानी के लिए तरस रहे चोपटा खंड के 20 गांव व 25 सेम से भी ग्रस्त
ग्रामीण बोले- चुनाव के समय बजाया जाता है झुनझुना, नेताओं के पास आश्वासन के अलावा कुछ नहीं
चोपटा। ऐलनाबाद विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले चोपटा खंड के 20 गांव नहरी पानी की कमी की समस्या से जूझ रहे हैं। इसके अलावा 25 गांवों में सेम की समस्या है। चुनाव के दौरान इन समस्या के समाधान के दावे करते हैं, लेकिन धरातल पर आज भी यह समस्या जस की तस है। हर पांच साल बाद यह समस्या मुद्दा बनकर उभर आती है, लेकिन समाधान के नाम पर सिर्फ जुमले ही मिलते हैं। यहां के किसानों का कहना है कि नहरी पानी की बारी एक महीने बाद ही मिल पाती है। सिंचाई के अभाव में फसल बोने का समय निकल जाता है और फिर जमीन खाली छोड़नी पड़ती है। अगर फसल किसी तरह से बो दी जाए, तो पानी की कमी के कारण पनप नहीं पाती।
चोपटा खंड में जोगीवाला, चाहरवाला, रामपुरा बगड़िया, कागदाना, कुम्हारिया, खेड़ी, गुसाईयाना, राजपुरा साहनी, जसानियां, जोड़किया, रामपुरा ढिल्लों, कुतियाना, जमाल सहित आसपास के गांव नहरों के अंतिम छोर पर पड़ते हैं। इसके कारण सिंचाई का पानी बहुत कम मात्रा में पहुंच पाता है। ग्रामीण पवन कुमार, महेंद्र सिंह, जगदीश, विनोद कुमार, महावीर का कहना है कि क्षेत्र अधिकतर जमीन सिंचाई के अभाव में खाली रह जाती है। इसके लिए किसान हर साल आंदोलन भी करते हैं। जब भी चुनाव आता है तो एक प्रमुख मुद्दा बनाकर प्रत्याशियों के सामने रखते हैं। प्रत्याशियों द्वारा आश्वासन भी दिया जाता है, लेकिन अगले चुनाव आने पर वही समस्या फिर उठाई
जाती है। इन्होंने बताया कि नहरों के अंतिम छोर पर पड़ने के कारण सिंचाई पानी पहुंचने में कई प्रकार की बाधाएं आती हैं। नहरों का पानी चोरी भी ज्यादा होता है। पानी में कटौती भी कर दी जाती है। नहर टूट जाने पर सिंचाई का संकट गहरा जाता है।
ग्रामीण विकास कुमार, सुरेश कुमार, पाला राम का कहना है कि नहरों में पानी महीने में दो सप्ताह तक के लिए आता है और दो सप्ताह बंद रहता है। ऐसे में अगर नहर पीछे से टूट जाए तो फिर बारी एक महीने बाद ही मिल पाती है। सिंचाई के अभाव में फसल बोने का समय निकल जाता है और फिर जमीन खाली छोड़नी पड़ती है। किसानों का कहना है कि हर बार चुनाव में सिंचाई पानी की कमी का मुद्दा जरूर उछलता है, लेकिन सरकार किसी भी पार्टी की हो कोई खास ध्यान नहीं देती।
20 हजार एकड़ भूमि सेम ग्रस्त
चोपटा क्षेत्र के लुदेसर, नाथूसरी कलां, माखोसरानी, शक्कर मंदोरी, शाहपुरिया, तरकांवाली, दड़वा कलां, रूपाणा, गुडिया खेड़ा सहित करीब 25 गांवों की 20000 एकड़ जमीन सेम से ग्रस्त है और 32 साल से बंजर बनी हुई है, जिसमें एक भी दाना नहीं उग पाता। ग्रामीणों का कहना है कि जब चुनाव का समय निकट आता है तो सेम को खत्म करने का झुनझुना बजाया जाता है और चुनाव के बाद सेम ग्रस्त जमीन की तरफ कोई ध्यान नही देता। विभाग की टीमों द्वारा सर्वे और दौरों के साथ ग्रामीणों को आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला। किसानों का कहना है कि हर बार जमीन को जोतने का मन करता है लेकिन सेम के कारण जुताई नहीं कर सकते।